बच्चे के जन्म के नौ, ग्यारह या इक्कीस दिन पश्चात ज्योतिष मुहुर्त अनुसार सूतीका स्नान, कुआ पूजन, सूरज पूजन, जनमा पूजन, नावण पूजन होगा। जिस दिन का मुहुर्त होता है उस दिन बच्चे को पहली बार नहलाया जाता है। आजकल कई घरों में सूतीका स्नान मुहुर्त से पूर्व ही बच्चे को नहला दिया जाता है जो पूरी तरह से गलत है। सूतिका स्नान के दिन बच्चे को नहलाने का शास्त्रोक्त तरीका है ताम्र पात्र मे जल लेकर उसमें दशांश गौमूत्र मिश्रित करके (ढाई लीटर पानी में पाव भर गौमूत्र डालकर ताम्बे के बर्तन में लेकर) उस जल से बच्चे का प्रथम स्नान हो तो बच्चा जीवन भर छोटे-मोटे चर्म रोगों से मुक्त रहेगा। कई माताएं सूतीका स्नान के दिन से ही बच्चों को साबुन से नहलाना शुरू कर देती है। आजकल तो कई प्रकार के बेबी साॅप यानि बच्चो के साबुन बाजार में मिलने लगे है। माताएँ उनसे बच्चों को नहलाती हैं। साबुन बच्चों का हो या बड़ों का कोई फर्क नहीं पड़ता। किसी भी साबुन के निर्माण में निश्चित रूप से रासायनिक सामग्री का उपयोग करना ही पड़ता है। जो बच्चों के स्वास्थ्य के लिए घातक हो सकता है। बाजार के साबुनों में तेल की जगह आजकल चर्बी का उपयोग होने लगा है। तेल के मुकाबले कत्लखानों से निकली वेस्टेज चर्बी सस्ती होती है। अब सोचिए कि जब चर्बी का उपयोग साबुन में हो रहा है और उसी साबुन से बच्चे के नहाने की शुरूआत हो रही है तो गौमांस से निर्मित साबुन का स्पर्श जब बालक के तन से होगा तो बालक की आध्यात्मिक शक्ति क्षीण होगी ही।
मुगलों द्वारा चित्तौड़ पर किया हुआ आक्रमण इस बात का प्रमाण है कि जब अलाउद्दीन खिलजी मेवाड़ के वीरों पर विजय नहीं पा सका तो उसने गोमुख कुण्ड में गो रक्त डलवाकर क्षत्रिय शक्ति को कमजोर कर दिया। ऐसे कई तथ्य है जो प्रमाणित करते हैं कि गोरक्त, गोमांस के अप्रत्यक्ष उपयोग से हिन्दू कमजोर हुआ था। अतः किसी भी परिस्थिति में बच्चे का प्रथम स्नान तो हमें गोमूत्र युक्त जल से ही कराना होगा। और हाँ यथा सम्भव स्वयं सेवित अपने घर की गोमाताजी का गोमूत्र हो तो ज्यादा उत्तम होगा। गोमूत्र मांग कर लाना ठीक नहीं होता है।