नौ माह गर्भ पूरे होने के बाद प्रसव पीड़ा ( बच्चे के जन्म के समय माँ के पेट में होने वाला दर्द) शुरू होगी, तब आप अपनी बहू-बेटी-पत्नी को लेकर चिकित्सालय जाओगे। वहाँ चिकित्सक इन्जेक्शन लगाकर औषधि देकर कुछ समय इन्तजार करेगा। अगर समय रहते डिलिवरी हुई तो ठीक और नहीं हुई तो चिकित्सक आपको आॅपरेशन (सिजिरियन डिलिवरी) के लिए कहेगा यानि पेट को चीरा लगाकर अप्राकृतिक तरीके से बच्चे को निकालना। ऐसे प्रसव के बहुत सारे नुकसान हंै। एक तो माता का पेट बिगाड़ना। दूसरा हो सकता है भविष्य मे उस माँ के गर्भधारण की संभावना ही समाप्त हो जाए। तीसरा बहुत बड़ी धन राशि का खर्च होना। चैथा उस बच्चे की जन्म कुण्डली नहीं बन पाएगी इसके परिणामस्वरूप भविष्य मे उस बच्चे के लग्न मुहुर्त सब कैसे निकेलेंगे? जन्म तो हुआ ही नहीं है तो जन्म कुण्डली भला कैसे बने? यह तो जबरदस्ती अप्राकृतिक मामला है। आॅपरेशन कुण्डली का कोई नया तरीका निकालें तो बात अलग है। कोई ज्ञानी ज्योतिष तो इस प्रकार की जन्म कुण्डली तो बनाएगा नहीं। अगर आप प्रसव के समय गोमाताजी की शरण ले लो तो इन विसंगतियों सहित अनावश्यक खर्च से भी बचा जा सकता है। इसके लिए करना क्या है समझिए- जैसे ही गर्भवती स्त्री का पेट दर्द शुरू हो तुरन्त स्वस्थ और सेवित देसी गोमाताजी का साफ सुथरा ताजा गोबर लंे। उसे साफ-सुथरे धोए हुए महीन सफेद सूती कपड़े में बांध लें और उसका रस निकाल कर 100 ग्राम के आस-पास गोमय रस दो-तीन टुकड़ों में आप प्रसव पीड़ा से परेशान स्त्री को पिला दें। कुछ ही समय में बिना तकलीफ के सामान्य प्रसव हो जाएगा। आप गोबर का रस पीने पिलाने में संकोच कतई मत करना। गोबर कोई मल नहीं है मल शोधक है। गन्दे स्थान को पवित्र कर देता है। गोबर अर्थात् गो$बर, गोबर साक्षात गौमाताजी का वरदान है। कई ऋषियों ने तो गोमाताजी के गोबर से निकलने वाले अन्न कणों को खाकर तप तपस्या कर दिव्य शक्तियों को पाया है। प्रसव पीड़ा के समय गोबर का रस पिलाते समय निम्न बातों का ख्याल रखना जरूरी है।
- गोबर देसी गौमाताजी का ही हो, जर्सी-हालिस्टन का नहीं।
- सड़क पर प्लास्टिक, कचरा खाने वाली गोमाता का नहीं हो।
- जिन गोमाताजी की अच्छी सेवा हो तथा अच्छा साफ सुथरा चारा
जीमती हो। - यह गोबर का रस उस स्त्री पर जल्दी असर करेगा जिसने 9 माह तक हाथ की चक्की चलाई हो और 9 महीने तक गोमाता का दूध पिया हो।