गर्भावस्था में माँ को कैल्शियम, आयरन व जिन पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होती हैं। वह सारे पोषक तत्व गोमाताजी के दूध में होते हैं। गौदुग्ध एक पूर्ण आहार है इसलिए गर्भावस्था में गोमाता जी का ही दूध पीना परम आवश्यक है इसके अलावा दूध को लेकर तो सर्वविदित कहावत है कि नौ माह तक माता जैसा पीवे दूध, वैसा ही जन्में उसके पूत।
भाषा भेद के साथ एक गाली सम्पूर्ण भारतवर्ष में चलती है। उस गाली से गोदुग्ध की महिमा जल्दी समझ में आएगी। जब कोई छोटा बच्चा अपनी बूढ़ी दादी को बहुत परेशान करे, बूढ़ी दादी की सुने नहीं, बूढ़ी दादी की माने नहीं तब बूढ़ी दादी अपने नाती-पोते को गाली देती है कि
‘तेरी माँ ने ऐसा क्या खाकर पैदा किया रे तुझे’’
या
‘‘थारी माँ अस्यो कई खान जण्यौ रे थने’’
इस गाली का भावार्थ समझो- माँ ने नौ मास जैसा खाया वैसा बच्चा हुआ। माता अगर नौ महीने देसी गैया मैया का दूध पिएगी तो पुत्र कृष्ण कन्हैया जैसा होगा और अगर माता नौ महीने तक भैंस का दूध पिएगी तो बच्चा शत-प्रतिशत पाडे़ जैसा होगा। पाड़ा तो कभी किसी की सुनता ही नहीं है। आप यदि किसी वाहन से जा रहे हो और मार्ग में आते हुए भैंस, पाड़ा, गौमाताजी एवं बैल भगवान मिल जाए तो आप हाॅर्न बजाने पर पायेंगे कि हाॅर्न की आवाज सुनकर गोमाताजी और बैल भगवान तो एक तरफ खड़े हो जाएंगे लेकिन भैंस और पाड़ा सड़क के बीच में ही चलेंगे। उनको कोई फर्क नहीं पड़ता है। जो भैंस तेज हाॅर्न की आवाज नहीं सुने ऐसी भैंस का दूध गर्भावस्था में माता ने पिया है तो उसका बच्चा अपनी माँ की कैसे सुनेगा? आप चाहो कि आपका पुत्र जीवन भर आपकी सुने तो फिर आपको गर्भावस्था के दौरान दूध गोमाताजी का ही उपयोग में लेना चाहिए, भैंस-जर्सी आदि पशुओं का नहीं।