मुण्डन संस्कार यानि जड़ूला । इसमें भी गोमाता जी की उपस्थिति बहुत ही आवश्यक है। आजकल बच्चों को घोड़ी पर बैठाकर बैण्ड-बाजांे के साथ पूरे गांव में शोभायात्रा निकालते है। फिर कुछ पूजा-अर्चना करके बालक के सिर से बाल उतार लिए जाते हैं। यानि नाई द्वारा सिर मुण्डवा लिया जाता है, टकली कर देते है। फिर 100-500 लोगों को अच्छा पकवान युक्त भोजन करवा देते है… बस हो गया मुण्डन। नहीं भाईयों-बहनों यह अपूर्ण विधि है। वास्तव मेें करना कुछ और होता है और इन्सान करता कुछ और है। मूल बातों को छोड़कर केवल दिखावे पर ज्यादा ध्यान देता है। आप शोभायात्रा नहीं निकालो कोई बात नहीं, लोगों को नहीं जिमाओगे तो चलेगा लेकिन एक काम आपको आवश्यक रूप से करना ही होगा। बच्चे के बाल उतारने के बाद उसके केशरहित सिर पर घी व गुड मिलाकर लेप कर दें फिर उसे गोमाताजी के सामने बिठाएँ। जैसे-जैसे गोमाताजी अपनी जीभ से उस बालक के सिर पर लगा घी-गुड़ चाटेगी, वैसे-वैसे पिछले जन्मों के कर्मों के अनुसार जो पाप कर्म की वृतियां है जो इन्सान को नवीन पाप कर्मों की तरफ प्रेरित करती हैं। उन समस्त वृतियों को चाटकर समाप्त कर देगी। अगर आप श्री मद् भागवत् महापुराण के श्री हरि नारायण और ध्रुवजी के मिलन प्रसंग में इसका वर्णन है ।
बड़ी आयु के लोग भी अगर वर्ष में एक बार अपने सिर को मुडंवाकर गोमाताजी से चटवाते रहे तो सहज में जीवन पुण्यकर्मों को करते हुए आगे बढ़ता जाएगा।