अन्नप्राशन संस्कार में प्रथम पंचगव्य ही क्यों ?

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बच्चे को माता के दूध के अलावा बाहर का अन्न प्रारम्भ करना यानि जन्म देने वाली माँ के स्तनपान के अलावा बाहर का दूध या अन्य कोई भी वस्तु खिलाना। सामान्यतया जब बच्चे को माँ के दूध के अलावा कुछ खिलाना हो तो अधिकांश माताएं दूध में रोटी मसलकर चूरमा बनाकर थोड़ी थोड़ी मात्रा में खिलाना शुरू कर देती हैं। कुछ माताएं ज्यादा पढ़ी लिखी होने के कारण टी.वी.या पत्र-पत्रिकाओं में आए विज्ञापनों की अन्ध भक्त बन जाती हैं। उनके सिर पर आधुनिकता के दिखावे का भूत चढ़ा होता है। उन्हें बेवकूफ बनाने के लिए बाजार में बच्चों के लिए सप्लीमेंट्री फूड के रूप में एनर्जी फूड के नाम से कई प्रकार का कचरा बिक रहा है। फेरेलेक, फोरलक्स, फार्नवीटा फोम्पलेन आदि। जिनके कवर और विज्ञापन तो बड़े सुन्दर होते हैं लेकिन अन्दर की सामग्री की गुणवता की जांच आप ही करो तो अच्छा है। सड़े गेहूं, मूंगफली की खली, सड़े चने का उपयोग इन फूड में होता है। यह सब दूध पानी में घोल-घोल कर पिलाती हैं और सोचती हैं कि मेरा बच्चा भीम बनेगा। यह सब नही खिलाओ तो अच्छा ही है। आधुनिक समाज की परिपाटी निभाने के लिए या अपने मन की कुण्ठा मिटाने के लिए खिलाना भी चाहो तो बाद में खिला देना, पर शुरूआत इन चीजों से मत करना। माँ के दूध के अलावा जब भी बाहर की कोई चीज खिलानी हो तो शुरूआत के 7-8 दिन पंचगव्य खिलाना चाहिए। देशी गोमाताजी का दूध,दही,घी,गोबर का रस और गोमूत्र यह पाँचो पदार्थ मिलाकर आप शुरूआत के दिनों में 7-8 दिन खिलाओ। इसके प्रयोग से विषैले तत्व शरीर पर तुरन्त व तीव्र प्रभाव नहीं दिखा पाऐंगें। जीवन में कभी फूड पोइजनिंग जैसी समस्या नहीं आएगी।
शास्त्र संकेत करते हैं कि जब कंस द्वारा भेजी गई बाल-घातनी पूतना नाम की राक्षसी, जो अपने स्तनों में दूध की जगह विष भरकर लाई और वह विष कन्हैया को पिलाने गई। पर कन्हैया को यशोदा माता ने पहले ही पंचगव्य दे रखा था और गोपियों एवं ग्वालों को इस बात का पता लगते ही वह कन्हैया को तुरन्त गौशाला में लेकर गए। वहां गोबर और गौमूत्र युक्त गोचरण रज का लेप किया और गोमाताजी की पूँछ से झाड़ा लगा दिया तो सारा का सारा जहर उतर गया। बच्चे को माँ के दूध के अलावा प्रथम आहार के रूप में अल्पमात्रा में कुछ दिन पंचगव्य दिया जाए तो बच्चा जीवन भर अम्लपित्त जैसी कई बीमारियों से मुक्त रहता है।

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