सामान्यतया हाथ की चक्की को केवल आटा, दलिया, दाल बनाने का साधन समझा जाता है, लेकिन ऐसा नहीं है। आटा, दलिया, दाल तो बाजार में बना बनाया भी मिलता है। अथवा विद्युत या डीजल से चलने वाली चक्की से भी यह सब बनाया जा सकता है। लेकिन हाथ की चक्की जब घूमती है तो उसमें से घड़घड़ाहट की आवाज निकलती है। वो ब्रह्मनाद स्वर है जो जीव का सम्बन्ध शिव से करवा देती है। जब गर्भवती नारी चक्की चलाती है तो उसके स्वर का प्रभाव गर्भस्थ जीव पर पड़ता है। चक्की जब घूमती है तो भगवान नारायण के सुदर्शन चक्र की शक्ति को खींच कर गर्भ के जीव तक पहुंचाती है और गर्भस्थ शिशु गर्भावस्था में ही शक्ति सम्पन्न हो जाता है। याद करो पहले हर घर में चक्की होती थी। माताएं सुबह-सुबह चक्की चलाती थी और साथ में भगवान का भजन (गीत) गाती थी। यह गीत गाने की क्रिया अपने आप शुरू हो जाती थी। हर घर में चक्की चलती, हर घर में भक्ति गीत गुनगुनाती। पूरा गांव सुबह-सुबह हरि-भक्ति में डूब जाता था।
आजकल हाथ की चक्की को कौन घुमावे। रात्रि को देर तक टी.वी. पर फिल्में देख कर देरी से सोएंगें फिर सुबह ब्रह्म मुहुर्त मे उठने की बजाए देरी से उठेगें, उठकर बिना नहाए धोए सीधा रसोई घर में जाएगें। ईश्वर भजन की जगह रात को जो गन्दी-गन्दी फिल्में देखी उनके अश्लील घटिया गीत गुनगुनाएगें। उन का असर होने वाले बच्चे पर निश्चित रूप से पड़ेगा ही पड़ेगा। महापुरूष कहते है कि नारी नो महीने जैसा सुनती है, देखती है बोलती है, करती है, खाती है, पीती है, सोचती है, विचारती है इन सब का प्रभाव गर्भस्थ बच्चे पर पड़ता ही पड़ता है। महाभारत में प्रमाण मिलता है कि धनुर्धर अर्जुन जब अपनी पत्नी सुभद्रा को चक्रव्यूह तोड़ने की कला बता रहे थे। तब उनके गर्भ में अभिमन्यु थे, देवी सुभद्रा को चक्रव्यूह भेेदन की बात समझ में आई ना आई लेकिन गर्भ में अभिमन्यु उस पूरी कला को समझ गये और महाभारत का युद्ध वीर अभिमन्यु की वीरता का इतिहास बन गया। जो बात माता अपने पुत्र को पेट में सिखा सकती है, वो तो दुनिया की किसी भी पाठशाला में नहीं सिखाई जा सकती। विश्व का सबसे बड़ा विद्यालय है माँ का पेट। यदि हमारे घरों में हाथ की चक्की नहीं है तो लेकर आएं। माता-पिता उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिए क्या-क्या नहीं करते है। फिर आपके लिए एक चक्की लाना और उसे घुमाना दोनो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है।