पाप और पुण्य का मूल दाता है अन्न, जिसे आप खाते है। आजकल पवित्र अन्न तो बचा ही कहाँ है। सारे अन्न में पाप ही पाप दिखाई दे रहा है। आप सोच रहे होंगे कि हमारे अन्न में पाप कहाँ से आया तो समझिएगा- अनाज पैदा होता है खेत में और खेती बिना कीडे-मकोड़े मरे होती नहीं। हर प्रकार के कृषि कार्य में जैसे जुताई, बुवाई, सिंचाई, निराई, गुड़ाई, कटाई, गहाई में जीव हत्या होती ही है। और आजकल तो कृषि में रासायनिक खाद और जहरीले कीटनाशक का छिड़काव करके करोड़ों कीड़ों को मार दिया जाता है। यानि एक-एक दाने में जीव हत्या का पाप रहता ही है।
‘‘ऐसे पाप के अन्न को आप ने खाया
उस अन्न के प्रभाव से प्रेम, शर्म, दया, धर्म का हुआ सफाया।
पाप ने आपके जीवन में स्थान बनाया।
और पुण्य को जीवन से कोसों दूर भगाया।’’
अब आपके मन में नया प्रश्न खड़ा हो रहा होगा कि कीट, पंतगें, कीड़े, मकोड़े तो पहले भी मरते थे। हां कोई ऋषि भी यदि कृषि करे तो भी कीड़े-मकोड़े तो मरते ही हैं। यह सत्य है कि जीव हत्या का पाप तो खेती में पहले भी होता था परन्तु पहले वो पाप का अन्न पेट में जाने से पहले ही पवित्र हो जाता था।
खेतों में बैल भगवान के खुरों (चरणों, पैरो) का स्पर्श पाप के अन्न को पवित्र कर दिया करते थे। आप सोचेंगे कि खेती में काम आने वाला बैल, भगवान कैसे हो गया?
श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रथम अध्याय में व्यास जी महाराज द्वारा वर्णित राजा परिक्षित के द्विग्विजय अभियान की यात्रा पर बैल भगवान से जो भेंट हुई, उस भेंट में स्पष्ट किया है कि बैल भगवान ही धर्म का रूप है।
एक दूसरे प्रसंग से समझिए- जब भगवान भोलेनाथ जी का विवाह पार्वती माता जी से तय हो गया तब कैलाश पर्वत से बारात हिमाचल नगरी की तरफ बढ़ी। भगवान भोलेनाथ जी पैदल ही चल पड़े। तब भगवान के गणों ने कहा प्रभु, इन्द्रदेव का सप्तमुखी श्वेतवर्ण का उच्चेश्रवा घोड़ा मंगवा लेते हैं। आप उस पर बैठकर पधारें। ऐसे बिना वाहन के विवाह करने पधारो यह तो अच्छा नहीं लगता है। भगवान महादेव ने कहा ‘‘वाहन तो लाओ लेकिन घोड़ा नहीं, घोड़ा वासना का रूप है और मैं विवाह उपासना के लिए कर रहा हूँ। और उपासना धर्म की जाती है। उपासना धर्मारूढ़ होकर ही की जा सकती है। और धर्म का चलता फिरता अवतार है बैल भगवान, इसलिए मेरे लिए बैल भगवान लाओ’’। तब धर्म रूपी बैल भगवान को लाया गया और प्रभु महादेव जी उन्ही पर बैठकर विवाह करने पधारे।
यह दोनों प्रसंग इस बात का प्रमाण है कि बैल ही धर्म का रूप है। धर्म ही भगवान हैं। तो धर्म रूपी बैल भगवान का पैर खेतों में लगते ही सम्पूर्ण कृषि का पाप समाप्त हो जाता है, अन्न का पाप समाप्त हो जाता है। क्योंकि जहाँ धर्म है वहाँ पाप कैसे रह सकता है।