क्या आप जानते है भवसागर पार कराने वाली दिव्यशक्ति गोमाताजी को जब से इन्सान ने पशु समझना शुरू किया उसके बाद इन्सान और साधारण पशुओं में कोई अन्तर नहीं रह गया।
आप स्वयं सोचिए आज इन्सान और जानवर में क्या अन्तर रह गया हैं? सुबह से शाम और जन्म से मरण तक जो काम आज का इन्सान कर रहा हंै वो तो किसी न किसी रूप में जानवर भी कर रहे है। इन्सान खाना खाता हैं तो कुत्ता भी कहीं न कहीं से अपना पेट भर लेता है। आप महंगा भोजन करते हो, कीमती भोजन करते हो तो मानसरोवर का हंस भी मोती खाकर पेट भरता है। जिसकी कीमत यदि देखी जाए तो लाखों में हैं। वह हमसें कहीं अधिक मंहगा भोजन करता हैं। आप उबटन साबुन से नहाते हो, दिन में 2 बार नहाते हो तो भैंस भी जहाँ पानी का गड्डा देखती है वहाँ नहा धोकर आ जाती हैं। हिमालय का पशु याक भंयकर ठण्ड में भी प्रातः 5 बजे नहा लेता है। अगर आप अपने रहने के लिए ईंट, पत्थर, रेत, चूना मिलाकर मकान बनाते है तो एक छोटी सी चिड़िया भी तो घास के तिनके टुकड़े जोड़कर अपना नीड़ (घौंसला) बना ही लेती है। आपके मकान में तो हो सकता है कि बरसात में पानी टपकने लगे पर उस छोटी सी चिड़िया के घोंसले में एक बून्द पानी नहीं जा सकता है। आप परिवार-समाज बनाकर रह रहे हो तो चींटी, दीमक, उदी, मधुमक्खी भी समाजवाद की परिभाषा समझती है। आप परिवार वृद्धि के लिए बच्चों को जन्म दे रहे हो तो सांप, बिच्छु, कबूतर, कौआ, सुअर, कुत्ता आदि तो इन्सान से ज्यादा बच्चों को प्रतिवर्ष जन्म देते है। अगर आप भविष्य में खाने के लिए अनाज सम्भाल कर रखते है तो एक छोटी सी चींटी के बिल में भी दानों का अपार भण्डार मिल जाएगा। एक छोटी सी मधुमक्खी भी अपने छत्ते को शहद से भरकर तैयार रखती है। अगर आप लम्बे समय तक खड़ा रहने की विद्या सीख लो या खड़ा रहकर तप करो तो भाई स्वस्थ घोड़ा तो जीवन भर खड़ा ही रहता है। वह कभी भी नहीं बैठता है। आप मौन समाधि साधना करो तो कछुआ प्रतिवर्ष 4 महीने के लिए समाधी में चला जाता हैं। आप अच्छी आवाज में मधुर स्वर में संगीत-गीत गाते हो फिर भी कोयल की बराबरी नही कर पाते हो। आप नृत्य करते हो, नाचते हो तो मोर भी नृत्य करता है। आप अपने बच्चों को पढ़ाते हो तो शहरों में लोगों को घोड़ों, तोतेे और कुत्तो को भी पढ़ाते देखा है। बच्चों से ज्यादा पढ़ाई की फीस कुत्तों की जमा करवाते हैं। आप अपनी सुन्दरता बढ़ाने के लिए दिन में कई बार रंगीन कपड़े बदलकर शरीर का रंग बदलते हो तो भाई एक साधारण गिरगिट बिना कपड़े बदले अपना कलर बदलने की क्षमता रखता है। दुःख की अवस्था में आप रोते है तो सियार और कुत्ता भी रो रोकर दुःख प्रकट कर देते है। तो फिर विचार करो कि खाना, पीना, नहाना, धोना, रोना, सोना, मकान बनाना, बच्चों को जन्म देना, नाचना, गाना, अच्छे कपड़े पहनकर सुन्दर बनकर घूमना यह सब तो किसी ना किसी रूप में जानवर और पशु-पक्षी भी कर रहे है। इतना कर लेने मात्र से आप इन्सान नहीं कहलाऐंगे।
इन्सान की पहचान तो मुख्य रूप से चार बातों से होती है। हृदय में प्रेम, आँखों में शर्म, जीवन में दया और होठों पर हँसी। यह चारो चीजें जिस मनुष्य के पास हैं वह है मानव और नही है तो
‘‘सो नर पशु बिनु पूँछ समाना’’
वह व्यक्ति बिना पूँछ के पशु के समान है अथवा मानव नही दानव है।