गौमाता 84 लाख योनियों का जीव नहीं है ….. जाने क्यों ?

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”तब-तब प्रभु धरि विविध शरीरा ।
    हरहिं कृपा निधि सज्जन पीरा ।।’’

यह प्रभु की इस लीला का ही हिस्सा है कि सज्जनों के दुःख को मिटाकर उन्हें सुखी करने के लिए ही भगवान असंख्य गौओं का रूप लेकर पृथ्वी पर पधारें है या यूँ कहें कि शक्ति स्वरूप निराकार, निरगुण, परब्रह्म परमपिता परमात्मा ने ही अंसख्य गौओं का रूप धारण कर रखा है। अगर आप गोमाताजी को 84 लाख योनियों का जीव समझ रहे हो तो ये सत्य नहीं हैं। गोमाताजी तो सीधे गो-लोक से पधारती है और वापस अपनी लीला पूर्ण करके गो-लोक में लौट जाती है।
श्री गोमाताजी है तो स्वयं भगवान, पर आपने कभी गोमाताजी को ह्रदय से निहारा नहीं। सिर्फ जीवन भर भौतिक संसार को यानि सांसारिक वस्तुओं को देखने भर की क्षमता रखने वाली दो चमड़ों की आँखों (चर्म चक्षुओं) से देखा। याद रखना आपकी इन चमड़ों की आँखों से तो भगवान कभी नहीं दिखेंगे।
आप स्वयं विचार करें कि जब कभी भी आप मन्दिर जाते है तो वहां सबसे पहले मन्दिर के दरवाजे पर प्रणाम करते है फिर वहाँ लगी हुई घण्टी को बजाते है और फिर अपने दोनों हाथों को जोड़कर और दोनों आँखों को भाव से बन्द करके मन्दिर में भगवान की मूर्ति (प्रतिमा) के सामने खड़े हो जाते है….यही करते हैं ना…क्यों भाई ?
जब आप घर से चले, पैरों को तकलीफ दी, समय खराब किया तो आँखों को खुला रखकर भगवान के दर्शन करने चाहिए थे ना । आपको किसी ने सिखाया, किसी ने प्रशिक्षण दिया कि मन्दिर में जाओ तो आँखें बन्द करना या फिर मन्दिर के सूचना पटट् पर लिखा रहता है कि कृपया आँखें बन्द करके दर्शन करें ? नहीं ना….फिर क्यों आँखों को बन्द करते हो?
वास्तविकता यह है कि आप अपनी इच्छा से आँखों को बन्द नहीं करते। मन्दिर में भगवान के सामने जाते ही आँखें अपने आप बन्द हो जाती है। स्वयं प्रभु प्रेरणा देकर कहते है कि भाई इन चमड़ों की आँखों को जरा बन्द कर लो क्योंकि चमड़े की आँखों से मुझे देखोगे तो मैं तुम्हें परमात्मा कि जगह पत्थर, भगवान की जगह साधारण रंग-बिरंगा पत्थर या पीतल की मूर्ति नजर आऊंगा। चमड़े की आँखों को बन्द करके जरा ह्रदय की आँखों को खोलकर देखो तो मैं तुम्हें हरि रूप में दिख सकता हूँ, प्रभु रूप में दिख सकता हूँ यानि प्रभु का ईश्वरीय रूप देखना हो तो भाव से, भीतर से, ॉदय से ही दिखाई देगें। तो फिर गोमाताजी को भी चमड़ों की आँखों से नहीं ह्रदय की भावनाओं से देखना पड़ेगा तो ही हमें उनका वास्तविक ईश्वरीय रूप दिखाई देगा और भ्रम मिटाकर हमारे जीवन के दुःखों की आंधी को आनन्द की पुरवाई में बदल देगा।

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