श्री गोमाताजी को माँ मानने वालों, पूज्या गोमाताजी की जय बोलने वालों क्या आपने गोमाताजी को सचमुच माँ माना है ?…यदि हाँ तो यह सरासर झूँठ है। हाँ जब भी कोई धार्मिक आयोजन हो तब आप गोमाताजी की जय बोल लेते हो, पूजा कर लेते हो उस समय क्षण मात्र के लिए आप पूज्या गोमाताजी को माँ मानते हो। इसके अतिरिक्त आपके जीवन में गोमाताजी केवल दो सींग, एक पूँछ और चार पैरों वाला जानवर, मवेशी, पशु मात्र है। आजकल आप अपने बच्चों को भी यही पढ़ाने में गर्व महसूस करते हो कि Cow is an useful animal और इसी सोच के चलते आप पूज्या गोमाताजी के साथ सामान्य भेड़, बकरी, भैंस, ऊंट जैसा व्यवहार करना शुरू कर देते हो और कई बार तो इन पशुओं से भी ज्यादा बदतर व्यवहार करना शुरू करते हो। अधिकांश लोग तो गौमाताजी को भैंस, भेड़, बकरी की तुलना में कम उपयोगी समझकर रखना ही पसन्द नहीं करते हैं, और अगर किसी के घर में गोमाताजी है तो सुबह-सुबह दूध निकाल कर सड़कों पर, बाजार में, रास्ते में, खेत-खलिहान में छोड़ देते हैं। और दूध भी चारों थनों का निकाल लेते है । बछड़ा भले ही भूखा रहे, हमारी बाल्टी पूरी भरनी चाहिए। दूध दुहने के बाद सूनी छोड़ी हुई गोमाताजी अपना पेट भरने के लिए रूखा-सूखा चारा, कचरा, प्लास्टिक की थैलियां इत्यादि खाती है। अगर कभी किसी के खेत में चली जाए या सब्जी वाले, फल वाले की दुकान की ओर चली जाए वहाँ से वो अनाज, फसल, फल, सब्जी खाए ना खाए पर किसान और सब्जी वाले का डण्डा, लाठी, पत्थर, बेंत की मार अवश्य खाकर आती है। शाम को पुनः घर पर आते ही आप लोग गोमाताजी के पैरों को बांधकर दूध निकाल लेते हैं ( दुहारी, दोहन कर लेते हैं ) और ये बांधना खोलना भी कब तक चलता हैं जब तक की गोमाताजी अच्छे से दूध देवें। जैसे ही गोमाताजी वृद्ध हुई, बूढ़ी हुई, गोमाताजी ने दूध देना बंद किया फिर तो हमेशा के लिए आप उसे असहाय लावारिस हालत में भटकने के लिए छोड़ देते हो। और अगर मन ज्यादा ही लोभी है तो सोचोगे की जाते-जाते बुढ़ापे में भी उससे कुछ लाभ हो जाए फिर कुछ रूपयों में कसाई, गो तस्कर या दलालों के हाथों सौंप देते हो। उस समय आपका धर्म, आपकी दया और आपकी करूणा पता नही कहाँ चली जाती है। कभी-कभी आपकी आत्मा आपको धिक्कारती
है कि जिसने माँ बनकर तुझे जीवन भर दूध पिलाया आज उसे तुम बुढ़ापे में कैसे बेच रहे हो तब आप आत्मा को समझा-बुझा कर कि ये कसाई नही व्यापारी है कहकर अपने आप को शान्त कर लेते हो। आपकी आत्मा कहती है ये व्यापारी आगे ले जाकर कसाई को ही तो काटने के लिए, वध करने के लिए सोपेंगे, तब तर्क देते हो कि उसकी करनी वो जाने हमने कसाई को नही व्यापारी को बेची हैं। ऐसा कहकर आप अपनी आत्मा की आवाज को दबा लेते हो। इस तरह आप लोग आत्मा की आवाज से तो बच जाओगे पर ये सारी बातें परमात्मा की किताब में भी तो लिखी जा रही है। भविष्य में कर्म, फल से अनजान होकर निरन्तर गोमाताजी के साथ ऐसा पशुवत व्यवहार करते-करते आपके मन में ये सोच गहरी बैठ जाती है कि यह तो जानवर है, पशु है, मवेशी है, ढोर है, ढाण्डा है। जबकि आपकी सोच के विपरीत सच यह है कि गोमाताजी पशु नहीं प्राणी नहीं सनातन धर्म का प्राण है, गोमाता जानवर नही हिन्दुस्तान की जान है । अपने वैदिक आर्य धर्म की शुद्ध पहचान है। पूर्ण सत्य तो यह है कि गोमाता अवतार है देवताओं की भगवान है। गोमाताजी स्वयं ही भगवान हैं, ईश्वर है, परमात्मा है अथवा यूँ कहें कि भगवान ही भौतिक स्वरूप में अनन्त गोमाताओं के रूप में अवतरित है।